प्रिय पाठकों नमस्कार ! आज के इस लेख में हम जानेंगे की भूमि क्षरण क्या हैं और भूमि क्षरण किसे कहते हैं एवं भूमि क्षरण के कारण क्या क्या है। भूमि क्षरण भौगोलिक अध्ययन का एक महत्वपूर्ण टॉपिक है जिसके बारे में हम आज जानेंगे । हम जानते हैं कि, भूमि क्षरण से आशय “ भूमि की उर्वरा शक्ति के क्षरण से है। तो चलिए अब यह पोस्ट शुरू करते हैं और विस्तार से समझते हैं कि भूमि क्षरण क्या है और भूमि क्षरण के प्रमुख कारण क्या क्या होते हैं । Bhumi ksharan ke karan
भूमि क्षरण किसे कहते हैं?
मृदा का अपने स्थान से विविध क्रियाओं द्वारा स्थानान्तरित होना क्षरण कहलाता है । यह भू-क्षरण कई प्राकृतिक कारकों यथा- गतिशील जल,, हिमानी तथा सामद्रिक लहरों द्वारा नियंत्रित तथा प्रभावित होती है। अथवा भूमि का कृषि के लिये अनुपयुक्त हो जाना भूमि क्षरण कहलाता है । यह कई कारणों से होता है।
भूमि क्षरण के कारण
Bhumi ksharan ke karan – : भूमि क्षरण अनेक कारणों से होता है –
- वनों का निर्ममतापूर्ण विनाश
- अनियन्त्रित पशुचारण
- वर्षा की प्रकृति
- भूमि का ढाल
- झूमिंग कृषि प्रणाली
- धरातलीय रचना
- अवैज्ञानिक कृषि करना
- रेतीली आंधियां ।
1. वनों का निर्ममतापूर्ण विनाश – अनेक शताब्दियों से मनुष्य ईंधन एवं घरेलू कार्यों के लिए निर्ममतापूर्ण वनों को नष्ट करता रहा है। पास के मैदानों को कृषि क्षेत्रों में बदलता रहा है, जिससे धरातल के ऊपरी तत्व वर्षा के जल के साथ घुलकर चले जाते हैं तथा अपरदन तीव्र गति से होता है जिससे बीहड़ बन जाते हैं।
2. अनियन्त्रित पशु चारण- भेड़, बकरियां धरातल की वनस्पति अन्तिम बिन्दु चरकर उसे खोखला कर देती हैं। ऐसे ढीले भागों पर वर्षा के जल द्वारा ऊपरी उपजाऊ परत बहकर चली जाती है तथा जमीन को अनुपजाऊ बना देती है।
३. वर्षा की प्रकृति- मूसलादार वर्षा होने पर तीव्र गति से बहता हुआ जल अपने साथ ऊपरी परत सहित उपजाऊ तत्त्वों को बहा ले जाता है। शुष्क क्षेत्रों में पवन अपरदन क्रिया होती है।
4. भूमि का ढाल – अधिक ढाल वाली जमीन पर अपरदन अधिक होता है। इसी कारण पर्वतीय भागों पर मैदानी भागों की अपेक्षा अपरदन अधिक होता है।
5. झूमिंग कृषि प्रणाली- झूमिंग कृषि प्रणाली के अन्तर्गत वनों को जलाकर उन्हें साफ़ करके कुछ वर्षों तक फसलें उगायी जाती हैं। भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट होने पर भूमि को कुछ वर्षों के लिए परती छोड़ दिया जाता है। इससे वनस्पति विहीन क्षेत्रों में अपरदन क्रिया तीव्र गति से प्रारम्भ होती है।
6. धरातलीय रचना – कोमल शैलों का अपरदन शीघ्र होता है तथा कठोर शैलों का अपरदन धीमी गति से होता है।
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7. अवैज्ञानिक कृषि – कृषि के अवैज्ञानिक ढंग अपनाकर कृषक स्वयं मिट्टी का क्षरण बढ़ाता है। ढालू क्षेत्रों में समोच्च रेखाओ के समानान्तर जुताई नहीं करने से, दोषयुक्त फसलों की हेरा-फेरी अपनाने से या आवरण फसलें गलत तरीके से बोने से भी मिट्टी क्षरण बढ़ता है। अब इस व्यवस्था को कृषि वैज्ञानिकों के तकनीकी सहयोग द्वारा तेजी से सुधारा जा रहा है।
8. रेतीली आंधियां – वर्षा ऋतु आगमन से पूर्व मरुस्थलीय क्षेत्रों में भीषण गरम व रेतीली आधियां चलती है। इससे ऊपरी परत की मिट्टी का धरातल पर आवरण क्षय होता है और कालान्तर में यह क्षेत्र अनुपजाऊ बन जाता है।
भारत में भूमि क्षरण की समस्या
भारतीय मिट्टियों को उर्वरा शक्ति प्रतिवर्ष गिरती जा रही है। इसके अतिरिक्त कई भागों में मिट्टियां बहती हुई कटकर समुद्र में चली जा रही है। अतः भूमि के अपक्षरण को यह समस्या भारत में बड़ी विषम है। मिट्टी के अपक्षरण को रेंगती हुई मृत्यु (Creeping Death) कहा जाता है। भूमि को उर्वरा शक्ति नष्ट होने से भूमि को पैदावर क्षीण होती है। यदि एक बार यह ऊपरी सतह नष्ट है तो भूमि की उर्वरा शक्ति भी क्षीण हो जाती है जिसके फलस्वरूप वहां किसी प्रकार की वनस्पति पैदा होना असम्भव हो जाता है।
FAQ’s
1. भूमि क्षरण क्या है?
भूमि के कणों का अपने मूल स्थान से हटने एवं दूसरे स्थान पर एकत्र होने की क्रिया को भू-क्षरण या मृदा अपरदन कहते हैं!
2. भूमि क्षरण के प्रमुख कारण ?
भूमि क्षरण अनेक कारणों से होता है जिसकी जानकरी आपको इस पोस्ट में बताई गयी है ।
निष्कर्ष –
आशा करता हूं कि यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी और अब आप जान गए होंगे कि भूमि क्षरण किसे कहते हैं, भूमि क्षरण क्या हैं और भूमि क्षरण के कारण क्या क्या है। Bhumi ksharan ke karan अगर आपको इस पोस्ट से रिलेटेड कोई समस्या हो या कोई शब्द समझ में नहीं आया हो तो हमे कमेंट करके जरूर बताएं हम आपकी मदद जरूर करेंगे। एसी ही एजुकेशन से भरी जानकारी जानने के लिए हमारे ब्लॉग को सब्सक्राइब जरूर करें। धन्यवाद