bharat ki videsh niti ke siddhant – हेल्लो दोस्तों नमस्कार ! इस पोस्ट में आपका स्वागत है । आज की इस पोस्ट में हम भारत की विदेश नीति bharat ki videsh niti क्या है तथा भारत की विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत क्या क्या है के बारे में विस्तार से जानेंगे । विदेश नीति का अर्थ उस नीति से है जो एक राष्ट्र द्वारा अन्य राष्ट्रों के प्रति अपनाई जाती है। विदेश नीति उन सिद्धांतों का समूह है, जो एक राष्ट्र दुसरे राष्ट्र के साथ अपने संबंधों के अंतर्गत अपने राष्ट्रीय हितो को प्राप्त करने के लिए अपनाता है । विदेश नीति एक स्थायी नीति है ।
भारत की विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत
bharat ki videsh niti ke siddhant – विदेश नीति उन सिद्धांतों का एक समूह है जो एक राष्ट्र, दूसरे राष्ट्र के साथ अपने संबंधों के अन्तर्गत अपने राष्ट्रीय हितों को प्राप्त करने के लिए अपनाता है। दूसरे राज्यों से अपने संबंधों के स्वरूप स्थिर करने के निर्णयों का क्रियान्वयन करना ही विदेश नीति है। इसी प्रकार विदेश नीति एक स्थायी नीति होती है, जो राष्ट्रीय जीवन मूल्यों से निर्मित होती है। भारत की विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत निम्न है –
- गुट निरपेक्षता
- नस्लवादी भेदभाव का विरोध
- पंचशील
- साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध
- विश्व शांति के लिए समर्थन
- निःशस्त्रीकरण का समर्थन
- परमाणु नीति
- सार्क से सहयोग
गुट निरपेक्षता –
विश्व में शांति व सुरक्षा बनाए रखने के लिए भारत ने गुट निरपेक्षता की नीति अपनाई जिसका अर्थ है शक्तिशाली गुटों से दूर रहना। गुट निरपेक्षता की नीति न तो पलायनवादी है और न अलगाववादी (जो लोग देश के किसी हिस्से को उससे अलग करना चाहते हैं, उन्हें अलगाववादी कहा जाता है) बल्कि मैत्रीपूर्ण सहयोग को संभव बनाने की है।
साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध –
ब्रिटिश साम्राज्यवाद के अधीन भारत दासता के दुष्परिणाम से परिचित रहा। अतः उसके लिए साम्राज्यवाद का विरोध करना स्वाभाविक था। भारत संयुक्त राष्ट्र में उपनिवेशवाद के विरुद्ध भी आवाज उठाता रहा है। आज भी भारत नव-उपनिवेशवाद के विरुद्ध आवाज उठा रहा है। इण्डोनेशिया, लीबिया, नामीबिया आदि साम्राज्यवाद से डरा हूआ देश हैं।
नस्लवादी भेदभाव का विरोध –
भारत सभी नस्लों की समानता में विश्वास रखता है। अपनी स्वतंत्रता के पहले भारत दक्षिण अफ्रीका की प्रजाति पृथक् होने की नीति के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ में बराबर प्रश्न उठाता रहा है। भारत ने जर्मनी की नाजीवादी नीति का भी विरोध किया। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में नस्लवाद की पूर्ण समाप्ति भारतीय विदेश नीति का प्रमुख सिद्धांत है।
पंचशील –
पंचशील पहली बार तिब्बत के मुद्दे पर 29 मई 1954 को भारत और चीन के बीच हुई संधि में साकार हुआ। पंचशील संस्कृत के दो शब्द पंच और शील से बना है। पंच का अर्थ है पाँच और शील का अर्थ है आचरण के नियम अर्थात् आचरण के पाँच नियम जो निम्न हैं-
- एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता और संप्रभुता का आदर ।
- अनाक्रमण।
- एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में अहस्तक्षेप
- समानता और पारस्परिक लाभ।
- शांतिपूर्ण सहअस्तित्व ।
विश्व शांति के लिए समर्थन –
भारत, संयुक्त राष्ट्र के मूल सदस्यों में से है। वह विश्व की शांति के लिए कार्य करता है। आई.एल.ओ., यूनीसेफ, एफ.ए.ओ.. यूनेस्को (ILO, UNICEF, FAO, UNESCO) आदि से वह सक्रिय रूप से जुड़ा है। भारत हमेशा से ही लोगों के सामाजिक और आर्थिक कल्याण के लिए संयुक्त राष्ट्र के निर्देशों का पालन करता रहा है।
निःशस्त्रीकरण का समर्थन –
निःशस्त्रीकरण का अर्थ है – विनाशकारी हथियारों/अस्त्रों-शस्त्रों के उत्पादन पर रोक लगना तथा उपलब्ध विनाशकारी हथियारों को नष्ट करना। भारत आज भी शस्त्रों की होड़ रोकने का समर्थक है। इसके लिए आवश्यक है कि जो शस्त्र बनाए जा रहे हैं, उन्हें न बनाया जाए और जो बने हैं, उन्हें नष्ट कर दिया जाए। केवल निःशस्त्रीकरण ही अंतर्राष्ट्रीय शांति को सुदृढ़ बना सकता है। निःशस्त्रीकरण से बचाए धन और साधनों के उपयोग से सभी राष्ट्रों का विकास हो सकता है।
परमाणु नीति –
भारत परमाणु नीति का युद्ध के लिए प्रयोग करने के विरुद्ध है। इस नीति के अनुसार भारत किसी भी देश पर परमाणु हमला तब तक नही करेगा जब तक कि शत्रु देश भारत के ऊपर हमला नही कर देता । भारत, अन्तरिक्ष के परमाणुकरण का समर्थन नहीं करता। तथापि वह परमाणु अप्रसार संधि का विरोधी है क्योंकि वह पक्षपात पर आधारित है।
सार्क से सहयोग –
सार्क का पूरा नाम दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) होता हैं। दक्षिण एशियाई राज्यों के साथ भाईचारे के संबंधों का विकास करने के लिए भारत ने सार्क की स्थापना में सहयोग दिया है। सार्क में भारत, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान, भूटान और मालदीव आदि राज्य सम्मिलित हैं।
इस प्रकार दिए गए उपर्युक्त सिद्धांतों ने भारत को उसके उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता भी की है तथा भारतीय विदेश नीति को गति भी प्रदान की है।
भारत की विदेश नीति
bharat ki videsh niti – भारत की विदेश नीति का विश्व पर गहरा प्रभाव पड़ा है। भारत का सांस्कृतिक अतीत अत्यन्त गौरवपूर्ण रहा है। न केवल पड़ोसी देशों के साथ अपितु दूर-दूर स्थित देशों के साथ भी भारत मैत्रीपूर्ण संबंधों के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहा है।
भारत की विदेश नीति की जड़े विगत कई शताब्दियों में विकसित सभ्यताओं के मूल में छिपी हुई हैं और इसमें प्राचीन तथा मध्ययुगीन चिन्तन शैलियों, ब्रिटिश नीतियों की विरासत, स्वाधीनता आंदोलन तथा वैदेशिक मामलों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहुँच, गाँधीवादी दर्शन के प्रभाव आदि का प्रभावशाली योग रहा है।
भारत की विदेश नीति के निर्धारक तत्व
bharat ki videsh niti – भारत की विदेश नीति के प्रमुख निर्धारक तत्व निम्न है –
- भौगोलिक तत्व
- गुटनिरपेक्षता
- ऐतिहासिक परम्पराएँ
- राष्ट्रीय हित
भौगोलिक तत्व –
भारत की विदेश नीति के निर्धारण में भारत के आकार एवं आकृति, एशिया में अपनी विशेष स्थिति तथा दूर-दूर तक फैली सामुद्रिक और पर्वतीय सीमाओं का विशेष स्थान है। भारतीय व्यापार तथा सुरक्षा इन्हीं भौगोलिक तत्वों पर निर्भर है।
गुटनिरपेक्षता –
विभिन्न शक्ति गुटों से तटस्थ या दूर रहते हुए अपनी स्वतन्त्र निर्णय नीति और राष्ट्रीय हित के अनुसार सही या न्याय का साथ देना। आंख बंद करके गुटों से अलग रहना गुटनिरपेक्षता कभी भी नहीं हो सकती। गुटनिरपेक्षता का अर्थ है – सही और गलत में अन्तर करके सदा सही नीति का समर्थन करना।
विश्व दो गुटों पूँजीवाद और साम्यवाद में बँटा हुआ था। दोनों में – मनमुटाव के कारण शीत युद्ध चल रहा था। भारत ने इन दोनों गुटों से अलग रहकर भारत ने अपने आपको गुटनिरपेक्ष देश रखा जो दोनों गुटों के मध्य मध्यस्थ का कार्य कर अन्तर्राष्ट्रीय तनाव को कम करने में सहायता करता है।
ऐतिहासिक परम्पराएँ –
भारत की विदेश नीति सदैव शांतिप्रिय रही है। भारत की – अपनी प्राचीन संस्कृति और इतिहास है आज तक भारत ने किसी दूसरे देश पर प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयत्न नहीं किया। यही परंपरा वर्तमान विदेश नीति में देखी जा सकती है।
राष्ट्रीय हित –
पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में कहा था कि किसी भी देश – की विदेश नीति की आधारशिला उसके राष्ट्रीय हित की सुरक्षा होती है और राष्ट्रीय हित की सुरक्षा करना ही भारत की विदेश नीति का मुख्य ध्येय यही है।
FAQ’s
1.भारत की विदेश नीति का जनक कौन है?
भारत की विदेश नीति के जनक/ रचनाकार जवाहर लाल नेहरू थे। कहा जाता है कि उन्होंने लगभग अकेले ही इस नीति दस्तावेज़ का प्रारूप बनाया था।
2. भारत में विदेश नीति कब बनी?
भारत की विदेश नीति का पहला चरण 1947 में प्रारंभ होकर 1962 तक चलता रहा है।
3. भारत की विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत लिखिए ?
विदेश नीति एक स्थायी नीति होती है, जो राष्ट्रीय जीवन मूल्यों से निर्मित होती है। भारत की विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत निम्न है जो इस पोस्ट में बताये गए हैं ।
4. भारत की विदेश नीति क्या है ?
भारत की विदेश नीति का विश्व पर गहरा प्रभाव पड़ा है। भारत का सांस्कृतिक अतीत अत्यन्त गौरवपूर्ण रहा है। न केवल पड़ोसी देशों के साथ अपितु दूर-दूर स्थित देशों के साथ भी भारत मैत्रीपूर्ण संबंधों के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहा है।
5. विदेश नीति के मुख्य उद्देश्य क्या हैं?
विदेश नीति आम तौर पर अधिकांश देशों के लिए सामान्य व्यापक उद्देश्यों और अंतर्राष्ट्रीय शांति बनाए रखने का अनुसरण करती है। विदेश नीति विभिन्न देशों के बीच आर्थिक, व्यावसायिक और सांस्कृतिक रूप से सहयोग को बढ़ावा देना।
आज आपने सीखा
आशा है की यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी और अब आप जान गए होगे की भारत की विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत क्या – क्या है तथा भारत की विदेश नीति क्या है। अगर आपको इस पोस्ट से रिलेटेड कोई समस्या है तो हमें जरुर बताएं हम आपकी मदद जरुर करेंगे । इतिहास और राजनीति से संबंधित अन्य महत्पूर्ण जानकारी भी आप इस वेबसाइट के माध्यम से जान सकते हैं।